क्या होता है डाउन सिंड्रोम? जानें इस बीमारी के कारण, लक्षण, निदान और उपचार

जब हम किसी बच्चे को देखते हैं, हमें वह अनगिनत सपनों और आशाओं का प्रतीक नजर आता है। हर माता-पिता की आशा होती है कि उनका बच्चा स्वस्थ हो, सफल हो, और समाज में अपनी अद्वितीय पहचान (unique identity) बनाए। लेकिन कई बार, जीवन हमें अपनी अद्वितीयता (uniqueness) के साथ सामना करने की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। और ऐसी एक चुनौती है डाउन सिंड्रोम। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) के बारे में विस्तृत चर्चा करेंगे। हम इस सिंड्रोम की परिभाषा, लक्षण, कारण, और इसके संभावित समाधानों पर ध्यान केंद्रित करेंगे।

डाउन सिंड्रोम क्या है? (What is Down Syndrome in Hindi)

Miracles Apollo Cradle के अत्यनुभवी बाल चिकित्सक (Pediatrician) के अनुसार डाउन सिंड्रोम एक जन्मजात विकार (congenital disorder) है, जो मनुष्यों के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करता है। डाउन सिंड्रोम, जिसे त्रिसोमी 21 (Trisomy 21) के नाम से भी जाना जाता है, जो क्रोमोसोम 21 (Chromosome 21) की एक अतिरिक्त प्रति के होने के कारण होता है। सामान्यतः मनुष्य के पास 23 जोड़ी क्रोमोसोम होते हैं, लेकिन डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों के पास सामान्य 46 के बजाय 47 क्रोमोसोम होते हैं, जिसमें एक अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 होता है। इस बीमारी को डॉ. जॉन लैंगडॉन डाउन ने 1866 में पहली बार describe किया था, इसलिए इसका नाम डाउन सिंड्रोम है।

डाउन सिंड्रोम के कारण और विकास के प्रकारों में विशेष अंतर हो सकता है, लेकिन इसे आमतौर पर मां की गर्भावस्था के दौरान गर्भ में शिशु की activities में एक गलती के रूप में वर्णित किया जाता है। इसका अर्थ है कि जो व्यक्ति डाउन सिंड्रोम से प्रभावित होता है, उनके कोशिकाओं (cells) में अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 होता है, जिससे शिशु के विकास में अंतराल होता है।

डाउन सिंड्रोम के संबंध में विभिन्न आँकड़े निम्नलिखित हैं:

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के अनुसार, डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) दुनिया में मनोवैज्ञानिक विकलांगता के प्रमुख आनुवांशिक कारणों में से एक है। DS अकेले ही दुनिया भर में मानसिक विकलांगता (Mental disability) वाले जनसंख्या का 15–20% हिस्सा बनाता है। एक सर्वेक्षण में डाउन सिंड्रोम की आवृत्ति का पता लगाया गया कि भारत के तीन महानगरों: मुंबई, दिल्ली, और बड़ौदा में 94,910 नवजात शिशुओं का 1 में से 1150 को डाउन सिंड्रोम की समस्या है। जेनेटिक विकार (Genetic Issues) समेत डाउन सिंड्रोम नवजातों में मौत के आम कारण बन रही है।

क्या हैं Down Syndrome के कारण? (Causes of Down Syndrome in Hindi)

डाउन सिंड्रोम का मुख्य कारण होता है एक अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 की abundance, जिसे त्रिसोमी 21 (Trisomy 21) के नाम से भी जाना जाता है। सामान्यतः, मनुष्य के कोशिकाओं में 23 जोड़ी क्रोमोसोम होते हैं, जिनमें से एक जोड़ी क्रोमोसोम 21 होती है। लेकिन डाउन सिंड्रोम के व्यक्तियों के कोशिकाओं में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 होता है, जिसके कारण इस विकार के लक्षण प्रकट होते हैं।

त्रिसोमी 21 का कारण आमतौर पर गर्भावस्था के शुरुआती चरण में जब गर्भवती महिला के एक अंडे और एक स्पर्म का जोड़ होता है, इस प्रक्रिया में अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 वाले शुक्राणु या अंडे का जोड़ हो सकता है, जिससे शिशु के विकास में अंतराल (lag in development) होता है और डाउन सिंड्रोम के लक्षण प्रकट होते हैं।

अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 का उत्पन्न होने का कारण विभिन्न हो सकते हैं, जैसे मात्रिका की उम्र के बढ़ने के साथ उनके अंडाणु (eggs) में अतिरिक्त क्रोमोसोम का उत्पन्न होना। यह विकार किसी विशेष उम्र समूह में अधिक संभावित हो सकता है, लेकिन यह सभी यौगिक संयोजनों के लिए उत्पन्न हो सकता है।

संक्षिप्त रूप में, डाउन सिंड्रोम के कारण Trisomy 21 है, जिसमें क्रोमोसोम 21 की एक अतिरिक्त प्रति होती है, जो मनुष्य के विकास को प्रभावित करती है।

Down Syndrome के प्रकार (Types of Down Syndrome in Hindi)

डाउन सिंड्रोम को मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया गया है:

  1. त्रिसोमी 21 (Trisomy 21): यह सबसे सामान्य प्रकार है और यह 21वें क्रोमोसोम की त्रिसोमी के कारण होता है। इस प्रकार के डाउन सिंड्रोम में व्यक्ति के शारीरिक गुण विकृतियों के साथ-साथ मानसिक विकलांगता भी हो सकती है।

  2. ट्रांसलोकेशनल डाउन सिंड्रोम (Translocation Down Syndrome): इस प्रकार के डाउन सिंड्रोम में 21वें क्रोमोसोम का एक हिस्सा किसी अन्य क्रोमोसोम के साथ जुड़ जाता है। इसका परिणाम होता है कि व्यक्ति को डाउन सिंड्रोम के लक्षण होते हैं, लेकिन उनके शारीरिक विकास में कुछ अंतर हो सकता है।

  3. मोजेइक डाउन सिंड्रोम (Mosaic Down Syndrome): इस प्रकार के डाउन सिंड्रोम में व्यक्ति के कुछ कोशिकाएं त्रिसोमी 21 के साथ होती हैं, जबकि कुछ कोशिकाएं नहीं होती हैं। इसका परिणाम होता है कि डाउन सिंड्रोम के लक्षण व्यक्ति के शारीरिक भागों में अलग-अलग होते हैं, और इस प्रकार के व्यक्तियों की स्थिति सामान्य डाउन सिंड्रोम से कम strong हो सकती है।

Down Syndrome के लक्षण (Down Syndrome Symptoms in Hindi)

डाउन सिंड्रोम के लक्षण शारीरिक, मानसिक और व्यावहारिक स्तर पर प्रकट हो सकते हैं, और इनमें निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं:

शारीरिक लक्षण(Physical Characteristics):

  1. छोटी ऊंचाई(Short Height): डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों की औसत ऊँचाई अधिक नहीं होती है।

  2. विशेष चेहरे की विशेषताएं (Special Facial Features): इनमें शामिल हो सकती हैं छोटी आंखें, विस्तृत मुखपट्टी (wide mouthpiece), बड़ी जीभ, और विशेष नाक की संरचना (special nasal structure)।

  3. कम मांसपेशी टोन (Low Muscle Tone): यह लक्षण नवजात शिशु या बच्चे के शारीरिक विकास में पाया जा सकता है। इसी कारण शिशु या बच्चा अपने शरीर को सामान्य ढंग से संभालने या स्थिति में सहायक होने की क्षमता में कमी महसूस कर सकता है। इसका परिणाम हो सकता है कि बच्चा किसी सामान्य गतिविधि को नहीं कर पाता है जो अन्य स्वस्थ बच्चों के लिए सामान्य होती है, जैसे कि बैठना, चलना, या दौड़ना।

  4. अन्य समस्याएं (Other Problems): कुछ डाउन सिंड्रोम के व्यक्तियों को हृदय समस्याएँ (Heart problems) , गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएँ (gastrointestinal issues), और सुनने में समस्याएँ (hearing problems) हो सकती हैं।

मानसिक लक्षण (Mental Symptoms):

  1. विकासात्मक विलम्ब (Delayed Developmental): डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों का मानसिक और शारीरिक विकास (development) आमतौर पर अधिक धीमा होता है।

  2. सीखने में अवरोध (Learning Barriers): इन व्यक्तियों को सामान्य लोगों की तुलना में शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।

  3. भाषा विकास में असमर्थता (Inability to Develop Language): वे बोलने और समझने में समस्याएँ झेल सकते हैं।

व्यावहारिक लक्षण(Behavioral Symptoms):

  1. सामाजिक असमर्थता (Social Disability): डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों को सामाजिक संवाद में समस्याएँ हो सकती हैं और वे अकेलेपन का सामना कर सकते हैं।

  2. धीरज, संवेदनशीलता, और मदद की आवश्यकता (Patience, sensitivity, and need for help): यह व्यक्तियां आमतौर पर संवेदनशील होती हैं और अधिक समय और मदद की आवश्यकता हो सकती है।

यह लक्षण व्यक्ति से व्यक्ति भिन्न हो सकते हैं और उनकी गंभीरता भी भिन्न हो सकती है, इसलिए डाउन सिंड्रोम के लक्षणों का विस्तार व्यक्ति के विवेक और प्रभावित क्षेत्र पर निर्भर करता है।

Down Syndrome के निदान (Diagnosis of Down Syndrome in Hindi)

डाउन सिंड्रोम का निदान initial stage में गर्भावस्था के दौरान होता है। अगर डॉक्टर को लगता है कि गर्भवती महिला का शिशु डाउन सिंड्रोम से प्रभावित हो सकता है, तो वह कुछ टेस्ट करवाता है।

  1. गर्भावस्था स्क्रीनिंग (Pregnancy Screening): यह टेस्ट गर्भावस्था के प्रारंभिक चरणों में किया जाता है, जो ज्यादातर पैरियोड के दौरान होता है। इसमें उल्ट्रासाउंड और मां के रक्त का टेस्ट शामिल होता है।

  2. गर्भावस्था स्क्रीनिंग के उपयुक्त टेस्ट: यह टेस्ट विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा सलाह दी जाती है अगर प्रारंभिक गर्भावस्था स्क्रीनिंग पर परिणाम असामान्य होते हैं। इसमें अतिरिक्त टेस्ट जैसे कि आमनियोसेंटेसिस और करियोटाइपिंग शामिल हो सकते हैं।

  • आमनियोसेंटेसिस (Amniocentesis): इस टेस्ट में, डॉक्टर गर्भ में शिशु के चारे को छिद्र के माध्यम से लेते हैं (baby's stool through an opening in the womb) और उसे परीक्षण के लिए भेजते हैं।

  • करियोटाइपिंग (Karyotyping): यह टेस्ट शिशु के क्रोमोसोम की संख्या और संरचना को जांचने के लिए किया जाता है।

इन टेस्टों के परिणामों के आधार पर, डॉक्टर डाउन सिंड्रोम की निश्चित जांच करते हैं। यदि शिशु को डाउन सिंड्रोम होने की संभावना होती है, तो डॉक्टर और विशेषज्ञ संज्ञान लेकर इस विषय में सही निर्णय लेते हैं और उपयुक्त उपचार की योजना तैयार करते हैं।

Down Syndrome के उपचार (Down Syndrome Treatment in Hindi)

डाउन सिंड्रोम का कोई कारगर और नियंत्रणात्मक उपचार मौजूद नहीं है, क्योंकि यह एक जन्मजात गैर-सांविदानिक स्थिति है जो एक अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 की प्राचुर्य (abundance) के कारण होती है। हालांकि, सामान्यतः उपचार और समर्थन सेवाएँ उपलब्ध होती हैं जो डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों को उनकी विशेष आवश्यकताओं के अनुसार सहायता प्रदान करती हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हो सकता है:

  1. चिकित्सा सहायता (Medical Help): डाउन सिंड्रोम के व्यक्तियों को नियमित चिकित्सा जांच और देखभाल की आवश्यकता होती है। बाल विशेषज्ञ (Pediatrician) के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है।

  2. शिक्षा सेवाएं (Education): डाउन सिंड्रोम के व्यक्तियों को उनकी शिक्षा और सामाजिक विकास में सहायता प्रदान की जाती है। स्पेशल एजुकेशनल सेवाएं, जैसे कि शिक्षा संस्थानों में विशेष शिक्षा कक्षाएं, इन व्यक्तियों के लिए उपलब्ध होती हैं।

  3. व्यायाम और फिजियोथेरेपी (Exercise and Physiotherapy): शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए नियमित व्यायाम और फिजियोथेरेपी (physiotherapy)से सहायता मिलती है। इससे शिशु के मांसपेशियों की कमजोरी को कम किया जा सकता है और उनके मानसिक और शारीरिक विकास को बढ़ावा मिलता है।

  4. व्यक्तिगत विकास और समाजिक सहायता (Personal Development and Social Support): उन्हें समाज में सही से शामिल किया जाता है ताकि उन्हें आत्मविश्वास मिले और वे स्वतंत्रता के साथ जीवन जी सकें।

  5. पारिवारिक समर्थन(family support): डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों के परिवार को भी सहायता और समर्थन की आवश्यकता होती है। उन्हें विशेषज्ञ सलाह, समर्थन समुदायों, और सामूहिक संगठनों के साथ जुड़ने की सलाह दी जाती है।

यह उपचार और समर्थन सेवाएँ डाउन सिंड्रोम वाले व्यक्तियों को उनके स्वाभाविक अधिकारों और जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए मदद करती हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

डाउन सिंड्रोम एक जन्मजात स्थिति है जो मनुष्यों के जीवन को प्रभावित करती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इन व्यक्तियों का जीवन अधूरा हो। यह अविश्वसनीय है कि डाउन सिंड्रोम के व्यक्तियों के लिए उपचार और समर्थन सेवाएं उपलब्ध हैं जो उन्हें उनके विशेष आवश्यकताओं के अनुसार सहायता प्रदान करती हैं। चिकित्सा, शिक्षा, फिजियोथेरेपी, और सामाजिक सहायता के माध्यम से, इन व्यक्तियों को उनके समर्थन के लिए आवश्यक उपाय और सुविधाएं मिलती हैं। परिवार, समाज, और सरकारी संगठनों का साथ उन्हें उनकी स्वतंत्रता, समाजिक समर्थन, और समानता के अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करता है। इस प्रकार, डाउन सिंड्रोम के व्यक्तियों को उनके पूर्णता के लिए मदद मिलती है और वे समाज में Involve होकर अपनी ज़िंदगी का आनंद उठा सकते हैं।

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